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लोककथा संग्रह

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लेधा और तेंदुआ संताड़ी/संताली लोक-कथा

एक समय की बात है लेधा नाम का लड़का कुछ दूसरे लड़कों के साथ एक पहाड़ी के तराई में अपने मवेशियों की रखवाली कर रहा था, ये सभी लड़के खेल-खेल में आवाज लगाते थे “हो, तेंदुआ-हो, तेंदुआ” और पहाड़ी से प्रतिध्वनि आती थी, “हो, तेंदुआ-हो, तेंदुआ।” वहां पहाड़ी पर वास्तव में एक तेंदुआ रहता था और एक दिन तेंदुआ पहाड़ी पर रहने वाले गिरगिट के साथ लुका-छिपी खेल रहा था। गिरगिट छुप गया और तेंदुआ गिरगिट को सभी स्थान पर खोजने लगा लेकिन सब चेष्टा व्यर्थ रहा, अंत में थक-हार के तेंदुआ ठीक उसी बिल के ऊपर जा बैठा जिस बिल में गिरगिट छिपा हुआ था।

गिरगिट ने सोचा की तेंदुआ की मंशा उसको क्षति पहुंचाने की है, मैं बिल से बाहर न निकल सकूँ, इसलिए मुझे कैद में रखने के लिए अपने पुट्ठा से बिल को बंद कर दिया है, इसी कारण गिरगिट ने प्रतिशोध में तेंदुआ को काटा खाया और उसके पुट्ठे को पकड़ कर लटक गया, अब इस प्रकार तेंदुआ परेशान हो उठा और समझ नहीं सका की कैसे इस झंझट से छुटकारा मिले, इसलिए उस दिन जब लड़के चिल्लाने लगे “हो, तेंदुआ,” “हो, तेंदुआ”, तब तेंदुआ उनकी सहायता लेने के लिए लड़कों के तरफ भागा: परन्तु जब लडकों ने तेंदुआ को आते देखा तो सभी प्राण बचाने हेतु वहां से भागे। हालाँकि लेधा तेजी से भाग नहीं सका; क्योंकि वह पंगु था, और तेंदुआ उसका मार्ग रोक के आगे खड़ा हो गया। उससे विनती किया की वह गिरगिट से रक्षा करे और उस को हटा दे। तेंदुआ ने उसे वादा किया की वह उसको नहीं खायगा, इसलिए लेधा ने ऐसा ही किया, और वहां से विदा होने से पहले तेंदुआ ने लेधा से यह भी वचन लिया की वह यह बात किसी और को नहीं बताएगा की गिरगिट ने उसको डराया है, काटा है। यदि उसने ऐसा किया तो वह उसको उठा कर ले जाएगा और खा जाएगा।

लेधा अपने मित्रों के बीच दोबारा चला गया, किंतु मित्रों से कुछ नहीं कहा की उसके और तेंदुआ के बीच क्या पारित हुआ है, परंतु रात में जब सभी सोने चले गए तो लेधा की भाभी यह जानने के लिए तंग करने लगी की तेंदुआ ने जब उसे पकड़ा तो उससे क्या वार्तालाप हुई है। वह बोला की यदि मैं तुम से कुछ बताता हूँ तो तेंदुआ मुझे खा जाएगा मगर वह उसको फुसलाते हुए बोली की घर के अंदर कोई नहीं सुनेगा; आखिरकार वह बोला की गिरगिट जो की तेंदुआ के पुट्ठा से लटका हुआ था उस को वहां से हटा दिया था और इसके बाद वे सोने चले गए; किंतु तेंदुआ उसके घर के पीछे छुपा हुआ था और उन्होंने जो बातचीत किया था उसने वह सब कुछ सुन लिया; और जब सभी सो गए तो वह दबे पाँव घर में घुसा और लेधा को बिस्तर सहित अपने माथा पर उठा के ले गया।

सुबह जब लेधा की नींद खुली तो देखा की घने जंगल में से उसे ले जाया जा रहा है, मार्ग में ऊपर एक पेड़ का डाल लटका हुआ था वह शीघ्रतापूर्वक पेड़ पर चढ़ गया। इस प्रकार तेंदुआ ने जब बिस्तर नीचे रख कर लेधा को खाने गया तो पाया की बिस्तर तो रिक्त है, इसलिए वह तुरंत उसी रास्ते से वापस उसी पेड़ के पास गया जिस पर की लेधा छिपा हुआ था। तेंदुआ ने लेधा से आग्रह किया की वह नीचे उतर कर आ जाये उससे एक जरूरी बात कहनी है, और वादा किया की उसको नहीं खायेगा, लेधा सीधे नीचे जमीन पर उतर गया तब तेंदुआ ने कहा “अब मैं तुम को खाने जा रहा हूँ।” लेधा बेबस था उसने तेंदुआ से कहा मैं मर जाऊँगा, उससे पहले खैनी खाने दो इस पर तेंदुआ राज़ी हो गया, लेधा खैनी के लिए अपने कपड़े को टटोला मगर खैनी आसानी से बहार नहीं निकला और लेधा ने जैसे सूखे खैनी के पत्तों को छुआ पत्तों से चरचराने की आवाज आई; तेंदुआ ने पूछा यह चरचराने की आवाज क्या थी, लेधा ने कहा यह उस गिरगिट की आवाज है जिसने तुम को कल काटा था। यह सुनते ही, इसे मत छोड़ना, इसे मत छोड़ना यह कहते हुए तेंदुआ वहां से भागा।

इस प्रकार लेधा तेंदुआ से तो बच गया, लेकिन जंगल से बाहर निकलने का रास्ता उसको मालूम नहीं था। वह इधर-उधर भटकते हुए एक ऐसे स्थान पर आ गया जहाँ जंगली भैंस रात में सोया करते थे। उसने उस जगह को झाड़ बुहार कर वहां की सफाई की और एक पेड़ के तने के खोखला में आश्रय लिया, वह वहां कुछ दिनों तक ठहरा जगह की नियमित रूप से सफाई करता और एक गूलर के पेड़ से फल खा कर अपना भरण पोषण करता रहा। अंततोगत्वा एक दिन भैंसों ने एक गाय को यह देखने के लिए वहां छोड़ गए की उन के सोने के स्थान की सफाई कौन करता है। गाय यह दिखावा करके की वह बीमार है और उठ नहीं सकती वहां पड़ी रही, लेधा यह सब देखने के कुछ देर बाद बाहर आया और नित्य की तरह जमीन की सफाई की, और तब बीमार गाय को उठाने की कोशिश में पूंछ पकड़ कर खींचने लगा; किन्तु गाय बिलकुल नहीं हिली इसलिए वह वापस पेड़ के खोखले में चला गया।

जब भैंसों ने वापस आ कर यह सुना की यह एक दयालु मनुष्य का काम है जो उनके सोने के स्थान की प्रतिदिन सफाई करता है; इसलिए वे सभी लेधा को बाहर बुलाए और कहा की वे उसको अपना सेवक रखना चाहते हैं जो कि उनके सोने के स्थान की सफाई और नदी में नहाने के समय उनका मार्जन करेगा; इसके लिए वे इन गायों में से सबसे स्वादिष्ट दूध वाली गाय का दूध देंगे। उस समय से वह भैंसों के साथ इधर-उधर भटकता रहता और अपने लिए एक बांसुरी बना के बजाता रहता। एक दिन भैंसों की रगड़ के सफाई कर नहलाने के बाद लेधा ने भी नदी में अपने सर के बालों की सफाई किया स्नान करते समय उसके सर के कुछ बाल टूट कर बाहर निकल गए, इसलिए उसने बालों को एक पत्ता में लपेट के एक पुलिन्दा बना के नदी प्रवाह की ओर बहने के लिए छोड़ दिया।

नदी के धारा के नीचे दो राजकुमारी अपने परिचारकों के साथ स्नान कर रही थी, उन्होंने पुलिंदा को बहते हुए देखा और कोशिश किया की उनमें से कौन इसे निकाल कर बाहर ला सकता है, छोटी राजकुमारी ने इस पुलिंदा को पकड़ के बाहर निकाल लिया। तब उन्होंने बाल की लम्बाई को मापा और पाया की बाल बारह हाथ लम्बा है। राजकुमारी जिसने पुलिंदा को पानी से निकाला था अपने घर गई और अपने बिस्तर पर सो गई और बोली वह तब तक नहीं अन्न ग्रहण नहीं करेगी, जब तक की वह आदमी जिसका यह लम्बा बाल है मिल नहीं जाता! राजा; उसके पिता ने सभी दिशाओं में हरकारा को उस लंबे बाल वाले व्यक्ति के खोज के लिए भेजा परंतु कोई उसे खोज नहीं पाया। तब राजा ने एक तोता को भेजा तोता ने बहुत ऊँचाई पर उड़ के नीचे देखा की लेधा जंगल में भैंसों के साथ विचरण कर रहा है। किन्तु उसकी हिम्मत उसके पास जाने की नहीं हुई इसलिए तोता वापस आ कर राजा को बताया की वह आदमी जंगल में था लेकिन कोई सन्देश वाहक उसके पास जंगली भैसों के डर से पहुँच नहीं सकता, तभी एक कौवा बोला की यदि कोई कर सकता है तो वो मैं हूँ, मैं उसको यहाँ ला सकता हूँ। इस प्रकार राजा ने कौवा को भेजा, कौवा वहां गया और भैंस के पीठ पर बैठ गया और भैंस को चोंच मारने लगा, लेधा कंकड़ फेंक कर कौवा को खदेड़ना चाहा लेकिन वह नहीं भागा तब वह डंडा फेंका लेकिन कौआ नहीं भागा और अंत में वह अपना बांसुरी फेंका। कौवा ने बांसुरी पकड़ लिया और उड़ कर एक पेड़ पर बांसुरी के साथ जा बैठा। लेधा उसके पीछे दौड़ा, मगर कौवा छोटे-छोटे दूरी का उड़ान भरता रहा, लेधा कौवा का पीछा करता रहा और इस प्रकार वह राजा के नगर में पहुँच गया।

कौवा उड़ते हुए एक कक्ष में प्रवेश कर गया जहाँ राजकुमारी लेटी हुई थी और वह बांसुरी राजकुमारी के हाथ में गिरा दिया। लेधा पीछे-पीछे चलते हुए उसी कक्ष में जा पहुंचा उसे कक्ष में बंद कर लिया गया और जब लेधा ने यह वचन दिया की वह राजकुमारी का पाणिग्रहण करेगा तब राजकुमारी ने उसे बांसुरी दे दिया। इस प्रकार वह विवाह करके दीर्घ काल तक वहां रुका रह गया, लेकिन इस बिच भैंसों का कोई देखभाल करने वाला नहीं होने के कारण सभी भैंस कमजोर एवं बीमार हो गए। एक दिन लेधा अपनी पत्नी के साथ भैंसों का जायजा लेने के लिए अरण्य में प्रस्थान किया और जब वह वहां बीमार भैंसों को देखा तो उसने निर्णय लिया की वह वन में एक घर बना कर यहीं रहेगा। राजा ने उन्हें रुपया-पैसा, हाथी, घोड़ा और नौकर-चाकर भेजे। लेधा और उसकी पत्नी दोनों वहां एक महल बना कर रहने लगे और लेधा ने पूरे कानन पर स्वामित्व कर लिया और बहुत बड़ा राजा बन गया। उसने अपने श्वसुर के घर तक राजमार्ग बनाए और उसी पथ से आना-जाना करता था।

कहानी का नैतिक अभिप्राय : बुद्धिमान, मेहनती एवं कृपालु भाव रखने वाला को लेधा के तरह सफलता मिल सकता है।

(भाषांतरकार: संताल परगना की लोककथाएँ: ब्रजेश दुबे)

  
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साभारः लोककथाओं से साभार।

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